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देवउठनी एकादशी की पौराणिक कथा

 कोट एकादशी की एक प्रमुख तथा शंखासुर नामक राक्षस 



 की संख्या सुनने तीनों लोकों में बहुत ही उत्पात   मचाया हुआ था तब सभी देवताओं के आग्रह करने पर भगवान  विष्णु ने उस राक्षस से युद्ध किया और यह युक्त कई   वर्षों तक चले युद्ध में वह असुर मारा गया और उसके  बाद भगवान विष्णु विश्राम करने चले गए कार्तिक शुक्ल   एकादशी के दिन भगवान विष्णु की निद्रा टूटी थी और  सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की पूजा की थी पुराण   के अनुसार पौराणिक समय में दैत्यों का राजा हुआ  करता था वह बहुत बड़ा भक्त था कई सालों तक यहां   संतान नहीं होने के कारण उसने शुक्राचार्य को अपना  गुरु बनाकर उनसे प्राप्त किया यह प्राप्त करके उसने   पुष्कर सरोवर में घोर तपस्या की भगवान विष्णु की  तपस्या से प्रसन्न हुए और उसे संतान प्राप्ति का   वरदान दे दिया भगवान विष्णु के वरदान कि राजा दम के  यहां एक पुत्र ने जन्म लिया इस पुत्र का नाम शंखचूर   रखा गया बड़ा होकर शंख चोर ने ब्रह्माजी को प्रसन्न  करने के लिए पुष्कर में घोर तपस्या की उसकी तपस्या   से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान मांगने  को कहा तब शंखचूड़ ने वरदान मांगा कि वह हमेशा अजर   अमर रहे व कोई भी देवता उसी नहीं मार पाए ब्रह्माजी  ने उसे यह वरदान दे दिया और कहा कि वह बदरीवन जाकर   धर्म ध्वज की पुत्री तुलसी तपस्या कर रही है उससे  विवाह कर लें शंखचूड़ ने वैसा ही किया और तुलसी के   साथ विवाह के बाद सुख पूर्वक रहने लगा उसने अपने बल  से देवताओं और असुरों एवं दानवों राक्षसों गंधर्वों   और नागों किन्नरों मनुष्यों तथा त्रिलोकी के सभी  प्राणियों पर विजय प्राप्त कर ली वह भगवान श्रीकृष्ण   का परम भक्त था शंखचूड़ के अत्याचारों से सभी देवता  पर दौरान होकर ब्रह्माजी के पास गए और ब्रह्मा जी   उन्हें भगवान विष्णु के पास गए भगवान विष्णु ने कहा  कि संघ चूर्ण की मृत्यु भगवान शिव के त्रिशूल से ही   होगी अतएव आप उनके पास जाएं भगवान शिव ने चित्ररथ  नामक गण को अपना दूध बनाकर शंखचूड़ के पास भेजा   चित्र ने शंखचूड़ को समझाया कि वह देवताओं को उनका  राज्य लौटा दे परंतु शंखचूड़ ने मना कर दिया और कहा   कि वह महेश्वर से युद्ध करना चाहता है भगवान शिव  को जब यह बात पता चली तो वह युग के लिए अपनी सेना   लेकर निकल पड़े इस तरह देवताओं और दानवों में हम  आसान युद्ध हुआ परंतु ब्रह्मा जी के वरदान के कारण   शंखचूड़ को देवता नहीं हरा पाए भगवान शिव ने शंखचूर  का वध करने के लिए जैसे ही अपना सिर उठाया तभी   आकाशवाणी हुई कि जब तक शंख चूड के हाथ में श्रीहरि  का कवच है और इसकी पत्नी का अस्तित्व अखंड है है तब   तक इसका वर्णन असंभव आकाशवाणी सुनकर भगवान विष्णु  वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण कर शंख चूड के पास गए   और उससे श्रीहरि कवच दान में मांग लिया और शंखचूड  ने वह कवच बिना किसी संकोच के दान कर दिया इसके बाद   भगवान विष्णु शंख छोड़कर रूप बनाकर तुलसी के पास  गए चक्षुओ रूपी भगवान विष्णु ने तुलसी के महल के   द्वार पर जाकर अपनी विजय होने की सूचना दी यह सुनकर  तुलसी बहुत प्रसन्न हुई और पति रूप में आए भगवान का   पूजन किया वर्णन किया ऐसा करते ही तुलसी का सतीत्व  खंडित हो और भगवान शिव ने युद्ध में अपने त्रिशूल से   शंखचूड़ का वध कर दिया तब तुलसी को पता चला कि उनके  पति नहीं बल्कि वे तो भगवान विष्णु है क्रोध में आकर   तुलसी ने कहा कि आप ने छलपूर्वक मेरा धर्म भ्रष्ट  किया है और मेरे पति को मार डाला अतः मैं आपको श्राप   देती हूं कि आप पाषाण होकर धरती पर रहे तब भगवान  विष्णु ने कहा कि देवी तुम मेरे लिए भारतवर्ष में   रहकर बहुत दिनों तक तपस्या कर चुकी हो तुम्हारा यह  शरीर नदी रुप में बदलकर गंडकी नामक नदी के रूप में   प्रसिद्ध होगा तुम पुष्पों में श्रेष्ठ तुलसी का  वृक्ष बन जाओगी और सदा मेरे साथ रहोगी तुम्हारे   श्राप को सत्य करने के लिए मैं पाषाण यानि शालिग्राम  बंद का गण पर मेरा वास होगा देवप्रबोधनी एकादशी के   दिन भगवान शालिग्राम व तुलसी का विवाह संपन्न कर  मांगलिक कार्यों का प्रारंभ किया जाता है हिंदू धर्म   मान्यताओं के अनुसार इस दिन तुलसी-शालिग्राम  विवाह करने से अपार पुण्य प्राप्त होता है

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