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।। श्री गणेश जी की आरती हिंदी में ।। गणेश भगवान की स्तुति ।।

 गणेश भगवान की स्तुति 


1.  वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।

   निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

 

अर्थ - घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर काय, करोड़ सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली।

मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें (करने की कृपा करें)॥


2  .   विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।

     नागाननाथ श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥


 अर्थ - विघ्नेश्वर, वर देनेवाले, देवताओं को प्रिय, लम्बोदर, कलाओंसे परिपूर्ण, जगत् का हित करनेवाले, गजके समान मुखवाले और वेद तथा यज्ञ से विभूषित पार्वतीपुत्र को नमस्कार है ; हे गणनाथ ! आपको नमस्कार है ।

3-     अमेयाय च हेरम्ब परशुधारकाय ते ।

     मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः ॥

 

अर्थ - हे हेरम्ब ! आपको किन्ही प्रमाणों द्वारा मापा नहीं जा सकता, आप परशु धारण करने वाले हैं, आपका वाहन मूषक है । आप विश्वेश्वर को बारम्बार नमस्कार है ।


4-  एकदन्ताय शुद्घाय सुमुखाय नमो नमः ।

    प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने ॥

 

अर्थ - जिनके एक दाँत और सुन्दर मुख है, जो शरणागत भक्तजनों के रक्षक तथा प्रणतजनों की पीड़ा का नाश करनेवाले हैं, उन शुद्धस्वरूप आप गणपति को बारम्बार नमस्कार है ।

 

5- एकदंताय विद्‍महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।।



अर्थ - एक दंत को हम जानते हैं। वक्रतुण्ड का हम ध्यान करते हैं। वह दन्ती (गजानन) हमें प्रेरणा प्रदान करें।





1. श्री गणेश जी की आरती 

       


 जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती ,  पिता महादेवा ॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी 
माथे सिंदूर सोहे,  मूसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश,  जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
पान चढ़े फुल चढ़े, और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा ॥
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ 
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥ 
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥ 
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो, जाऊं बलिहारी ॥
जय गणेश जय गणेश,जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥

    बोलिये गणेश भगवान जी की जय   


2. श्री गणेश जी की आरती 



गणपति की सेवा मंगल मेवा सेवा से सब विघ्न टरै ।

तीन लोक तैतिस देवता द्वार खडे सब अरज कारै ॥



रिद्धी सिद्धी दक्षिण वाम विराजे, अरु आंनद से चवँर ढले।

धूप दीप और लिये आरती

 भक्त खडे जयकार करे ॥ गणपति की



गुड के मोदक भोग लगे हैं, मुषक वाहन चढ़ा करैं ।

सौम्यरुप सेवा गणपति की, विघ्न भाग जा दूर पडे ॥ गणपति की



भादों मास और शुक्ल चतुर्थी दिन दोपहरी पूर्ण पडे ।

लियो जन्म गणपति प्रभुजी ने दुर्गा मन आनंद भये ॥ गणपति की



अद्भुत बाजा बजे इंद्र का, देववधू जयगान करे ।

श्री शंकर जी के आनंद उपज्यों ,नाम सुने सब विघ्न टरैं ॥ गणपति की



आनि विधाता बैठे आसन, इंद्र अप्सरा नृत्य करे ।

देख वेद ब्रम्हाजी जाको विघ्नविनायक नाम धरै ॥ गणपति की



एक दंत गजबदन विनायक, त्रिनयन रुप अनूप धरैं ।

पग खम्बा सा उदर पुष्ट हैं देख चंद्रमा हास्य करैं ॥ गणपति की



दे श्राप श्री चंद्र देव को कलाहीन तत्काल करें ।

चौदह लोक मे फिरे गणपति तीन भवन में राज्य करैं ॥ गणपति की



उठी प्रभात जब धरें ध्यान को‌ई ताके कारज सर्व सरे ।

पूजा काले गावे आरती ,ताके सिर यश छत्र फिरे ॥ गणपति की



गणपति की पूजा पहले करनी ,काम सभी निर्विघ्न सरै ।

श्री प्रताप गणपति प्रभुजी की हाथ जोड स्तुति करैं ॥ गणपति की



गणपति की सेवा मंगल मेवा, सेवा से सब विघ्न टरै ।

तीन लोक तैतिस देवता द्वार खडे सब अरज करै ॥गणपति की

       


        गणपति बाप्पा मोरिया 


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